वाइडएंगल ऑफ लाइफ

बारिश पर गज़ल/शायरी : बारिश की 10 खूबसूरत नज़्में…

दोस्तो बारिश अब हमसे रूठ गई है। बारिश पर गज़ल या बारिश पर कविता अब कौन करता है।

बचपन के दिन वाले बारिश याद कीजिए। अब न वैसी घटाएं आती हैं,  न रात भर उमड़ कर पानी गिरता है और न सुबह होते चारों तरफ पानी का दृश्य और उसमें मेंढक की सुरीली तान होती है। पिछले 80 साल के आंकड़े बताते हैं किस तरह मानसून लगातार कमजोर पड़ रहा है। पहले मानसून को लेकर इतना हल्ला नहीं मचता क्योंकि उसे जब आना था वह मुस्तैदी से आता था। कभी-कभी सूखे भी पड़ते थे लेकिन जब बारिश होती थी तो इतनी कि धरती पर जीवन पूरा तृप्त होता था।

पहले के दिन थे जब लोग दिल खोलकर पानी का स्वागत करते थे और वर्षा उल्लास लेकर आती थी। हवाओं के रुख पर हमारी नजरें लगी होती थीं। हमारी रुचि थी कि हम जानते थे किस हवा से बादल आएंगे किससे नहीं। कौन से बादल बरसेंगे कौन नहीं। जून से आसमान पर काले बादलोंं का कब्जा होता और क्या बच्चे क्या बड़े सब केवल बादल और वर्षा की बाते करते। बच्चे अमराइयों की ओर भागते, लड़कियां छतों पर निकलतीं और माएं अनाज समेटतीं।

अब हाल ये है कि बाहर बादल घुमड़ रहे हैं हम घरों के अपनी-अपनी धुन में व्यस्त हैं। हमने वर्षा का स्वागत करना छोड़ दिया है। अब ठंडी हवा और घनघोर घटाएं हमारे अंदर कोई विकलता पैदा नहीं कर पातीं। हम बड़े व्यस्त लोग हो गए हैं। हमारे जीवन कामों से भर गया है। हमें बहुत कमाना है, जिंदगी में बहुत हासिल करना है बहुत सारी चीजें अर्जित करनी है। वर्षा करना मानसून और बादलों की ड्यूटी हैं, वे करें अपना काम।

मानसून समय पर न आए (जो कि समय पर अब कभी नहीं आता और न पूरा बरसता है) तो हमारा काम होता है एसी कक्ष में बैठकर उनको कोसना। जबकि, जंगल उजाड़कर पेड़ काट कर और हवाओं में जहर घोलकर हमने ही मानसून के आने को मुश्किल बनाया है।

जनवादी, यथार्थवादी, समाजवादी और जाने किस-किस चौखटे में बंधेे साहित्य के इस दौर में धूप, हवा, मौसम, बरसात जैसे विषयों पर लिखने वाले लेखकों की बिरादरी मेंं प्रतिष्ठता घटती है। आज का लेखक क्रांतिकारी होता है। उसके लिए ये सब विषय स्कूली बच्चों की किताबों के लायक हैं।

बारिश के दिनों में या उसके आने से पहले उसके बारे में चर्चा होनी चाहिए। उसके गीत होने चाहिए। हवाओं में मेघमल्हार के राग घुलने चाहिए। लोगों में इतनी संवेदना, इतना प्रकृति-बोध तो होना ही चाहिए। आइए हम आनंद लें बारिश पर लिखे इन सुंदर गज़लों के। क्या पता  मेघों को इससे थोड़ा सम्मान मिले और वे कुछ अधिक देर ठहर कर बरस जाएं! 

बारिश पर गज़ल – 10 सुंदर शेर

बरसात तो दीवाना है क्या जाने,
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है। -निदा फ़ाज़ली

हमसे पूछो मिजाज बारिश का
हम जो कच्चेे मकान वाले हैं। -अशफाक अंजुम

टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर
वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए
– सज्जाद बाक़र रिजवी

मैं चुप कराता हूं हर शब उमड़ती बारिश को,
मगर ये रोज गई बात छेेेड़ देती हैैै। -गुलज़ार

तमाम रात नहाया था शहर बारिश में    
वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे
– जमाल एहसानी

उस ने बारिश में भी खिड़की खोल के देखा नहीं
भीगने वालों को कल क्या क्या परेशानी हुई
 – जमाल एहसानी

भीगी मिट्टी की महक प्यास बढ़ा देती है
दर्द बरसात की बूँदों में बसा करता है
– मरग़ूब अली

‘कैफ़’ परदेस में मत याद करो अपना मकाँ
अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा
– कैफ़ भोपाली

रईसों के वास्ते बारिश ख़ुशी की बात सही
मुफलिसी की छत के लिए इम्तिहान होता है!

प्यासे रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िर,
मारो ज़मीं पे पाँव कि पानी निकल पड़े !!
-इकबाल साजिद

और पढ़ें-


Exit mobile version