रोचक लघुकथा : फकीर का फैसला…

प्रेरक लघुकथा : फकीर का फैसला

कभी-कभी दावों और तर्कों से परे एक छोटी सी व्यावहारिक सूझ जीवन को और उलझ जाने से बचा लेती है। इस प्रेरक और रोचक लघुकथा में फकीर ने अपनी सूझ-बूझ से ऐसा ही किया।

किसी जमाने की बात है, एक ब्राह्मण था जिसकी एक बेहद सुंदर और गुणसंपन्न बेटी थी। ब्राह्मण किसी प्रतिष्ठित परिवार के योग्य और पूर्ण-संपन्न लड़के के हाथों में अपनी बेटी का हाथ देना चाहता था। कई रिश्ते मिले लेकिन ब्राह्मण को अपने जवांई के रूप में कोई लड़का पसंद नहीं आया। धीरे-धीरे समय खिसकता गया और लड़की की उम्र बढ़ती गई। ब्राह्मण और उसकी पत्नी तो बेटी के ब्याह के लिए चिंतित थे ही, उनका बेटा भी अपनी बहन की बढ़ती उम्र को लेकर बहुत परेशान रहता था। कोई बढ़िया सा लड़का मिलता भी तो उनकी दहेज की मांग पूरा करने में ब्राह्मण परिवार खुद को असमर्थ पाता।

ब्राह्मण अधिक से अधिक घरों में यजमानी करता। उसका बेटा दूसरे गांवों में जाकर मजदूरी करता और ब्राह्मणी लोगों के घर अनाज पीसकर, खेतों मे काम कर पैसे जमा करती। फिर भी, दहेज लायक जमा करने में वे असमर्थ रहे। ब्राह्मण परिवार लगातार दुःख और तनाव में जी रहा था। लड़की सोचती उसकी वजह से घर के लोगों का सुख छिन गया है। वह मन ही मन खुद को कोसती रहती थी।

एक दिन ब्राह्मण दूसरे गांव अपने एक यजमान के घर पूजा कराने गया था। ब्राह्मण का बेटा भी अपने काम पर गया था। उसी दिन एक सुंदर युवक पथिक पानी पीने और दोपहर की गर्मी में कुछ पल विश्राम के इरादे से ब्राह्मण के दरवाजे पर पधारा। ब्राह्मणी को एक ही नजर में वह लड़का जंच गया। आवभगत के बाद ब्राह्मणी ने उससे अपनी बेटी के रिश्ते की बात की। लड़का सहर्ष राजी हो गया। उधर, संयोग ऐसा हुआ कि ब्राह्मण को भी अपने यजमान के घर एक बड़े ही अच्छे लड़के का प्रस्ताव मिला। ब्राहमण लड़के को अपने घर लिवा लाया ताकि वह लड़की को देखकर शादी का निर्णय करे। संयोग एक और हुआ कि उसी दिन ब्राह्मण के बेटे को भी एक अच्छा लड़का मिल गया और वह भी उसे अपने साथ घर लेता आया।

इधर, सुबह को गाय के चारे के लिए जंगल गई लड़की शाम तक नहीं लौटी। अतिथियों को घर पर छोड़ ब्राह्मण और उसका बेटा उसकी तलाश में निकले। देर शाम जब वे लौटे तो उनके साथ लड़की नहीं उसकी लाश थी। लड़की ने जंगल में आत्महत्या कर ली थी। तीनों युवक जो आपस में एक दूसरे से अनजान और मन ही मन लड़की को अपनी पत्नी मान बैठे थे, इस घटना से सन्न रह गए। तीनों ने आजीवन विवाह नहीं करने का फैसला कर लिया। लड़की के दाह-संस्कार के बाद उनमें से एक ने लड़की की अस्थियां और राख बटोरी और अपने पास रख लिया। दूसरा युवक वैरागी बनकर गांव-गांव, शहर-शहर भटकने लगा। तीसरे ने श्मशान में कुटिया बनाई और वहीं रहने लगा।

एक दिन वैरागी युवक भिक्षा मांगते हुए एक विचित्र परिवार में पहुंचा। घर की मालकिन ने उसे आदर से खाने के लिए बिठाया। तभी उसकी छोटी सी बेटी ने भोजन जूठा कर दिया। गुस्से में मां ने बेटी को इतनी रोज से डंडे से मारा कि वह तड़प कर तुंरत मर गई। तभी घर का मालिक बाहर से आया। उसने तुरंत एक अंदर जाकर एक पुरानी पोथी निकाली। बच्ची के सिर के पास बैठक उसमें लिखा कोई मंत्र पढ़ा और बच्ची जी उठी। वैरागी युवक के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। उसने मन ही मन एक योजना सोची। वह रात को वहीं रुक गया। आधी रात जब सारा घर नींद में बेसुध था उसने चुपके वह पोथी चुरा ली, और उस श्मशान की तरह चल दिया जहां उसकी होने वाली पत्नी की चिता जली थी।

श्मशान में तीनों युवक इकट्ठे हुए। लड़की की अस्थियां और राख निकाली गई। वैरागी युवक ने पोथी खोलकर मंत्र पढ़ा। आश्चर्य, अस्थियों और राख की ढेरी में से लड़की जी उठी! तीनों युवह हतप्रभ हुए उसे देखते रहे।

अब सवाल था लड़की किसकी पत्नी बने? अस्थि और राख वाला युवक और मंत्र से लड़की को जिंदा करने वाला युवक- दोनों आपस में लड़ने लगे। दोनों का अपना-अपना दावा था। लड़की चुप थी। तभी उधर से एक फकीर गुजरा। युवकों से उनसे मध्यस्थता करने की विनती की। पूरी कहानी सुनने के बाद फकीर अस्थि और राख वाले युवक से मुखातिब हुआ और कहा, ‘बेटा तुमने अस्थियां एकत्र कर वह काम किया जो एक बेटा अपनी मां के लिए करता है। इस लिहाज से यह लड़की तुम्हारी मां हुई’। फिर वह पोथी वाले युवक की ओर मुड़ा और बोला, ‘बेटा तुमने इस लड़की को जीवन दिया है। इस लिहाज से तुम इसके पिता हुए।’

आखिर में फकीर ने कहा, ‘और इस युवक ने वही किया जो एक जीवन साथी करता है। वह यहां रहकर बस उसकी स्मृति में जीवन काटता रहा। तो, इस लिहाज से लड़की चाहे तो इस तीसरे युवक की पत्नी बन सकती है’। दोनों युवकों ने अपनी जिद छोड़ दी और चारों को आशीर्वाद देकर बुद्धिमान फकीर अपनी राह चल पड़ा!

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फलसफा यही कि चलते रहना, सीखते रहना और बांटते रहना। अपने बारे में मुझे लगता है यही काफी है, बाकी हम भी आपकी तरह ही हैं।

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