लघुकथा – भूख और ईश्वर का संकेत

लघुकथा - भूख

हिंदी लघुकथा – भूख और ईश्वर का संकेत

जीवन में सच्ची जरूरत और उसकी सहज प्रतिक्रिया पर आधारित लघुकथा- भूख…
एक समय की बात है, तीन साधु ज्ञान की खोज में हिमालय पहुंचे। पहाड़ी गांवों से गुजरते हुए लोगों से जो कुछ मिलता खा लेते और अपनी खोज में चलते रहते। एक दिन उन्हें जोरों की भूख लगी। उन्होंने पाया कि उनके पास रोटियां सिर्फ दो बची थीं। उन्होंने तय किया कि उस दिन वे भूखे ही सो जाएंगे। सपने में आकर ईश्वर जिसे रोटी खाने का संकेत देंगे, वही रोटियां खाएगा। ऐसा फैसला कर तीनों साधु सो गए।

आधी रात के बाद अचानक तीनों साधु उठे और उठकर एक दूसरे को अपना सपना सुनाने लगे। पहले ने कहा, ‘मैं सपने एक निर्जन किंतु दिव्य स्थल पर पहुंचा। वहां अपार शांति थी और वहीं मुझे ईश्वर के दर्शन हुए। ईश्वर ने मुझसे कहा तुमने जीवन भर दूसरों के लिए त्याग किए हैं, इसलिए ये रोटियां तुम्हें खानी चाहिए’।

दूसरे साधु ने भी अपना सपना सुनाया। उसने कहा, ‘मैंने देखा अपने पिछले जन्म की तपस्या के कारण मैं महात्मा बन गया हूं। अचानक ईश्वर मेरे सामने प्रकट हुए और बोले- कठिन तपस्या करते हुए तुम औरों से श्रेष्ठ हो गए हो। तुम्हारे पास पुण्य का अथाह भंडार संचित हो गया है, इसलिए इस पुण्य की बदौलत रोटियों पर पहला हक तुम्हारा बनता है।’

तीसरा साधु अपने दोनों मित्रों की बात बड़े शांत भाव से सुन रहा था। अब उसके बारी थी। उसने बड़ी शांति और गंभीरता से कहा, ‘मुझे सपने में ईश्वर नहीं मिले। न ही उन्होंने मुझे रोटियां खाने को कहा। आधी रात को अचानक भूख से मेरी नींद खुली और मैंने रोटियां खा लीं।’

दोनों साधु चिल्लाए- ‘अरे, तो तुमने हमें क्यों नहीं बताया?’

‘कैसे बताता, तुम दोनों तो गहरी नींद में ईश्वर से साक्षात्कार करने में लगे हुए थे। मुझे ईश्वर ने तीव्र भूख का अनुभव कराया और मेरी नींद खुलवा दी। यही संकेत मेरे लिए पर्याप्त था कि मुझे रोटियां खा लेनी चाहिए!
(संकलित)

       

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फलसफा यही कि चलते रहना, सीखते रहना और बांटते रहना। अपने बारे में मुझे लगता है यही काफी है, बाकी हम भी आपकी तरह ही हैं।

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