कोकरे बेल्लूर : जहां है हर आंगन प्रवासी प्रक्षियों का बसेरा

कोकरे बेल्लूर/Kokkare Bellur
पेंटेड स्टॉर्क

मनुष्य चाहे जितना अहंकार पाल कर रखे लेकिन धरती पर तमाम किस्म के जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों के साथ साझी भावना के साथ जीना उसके हित में है। सामाजिक प्राणी होने से पहले मनुष्य प्रकृति की संतान है और इस लिहाज से प्रकृति के अन्य प्राणियों के साथ मनुष्य का एक सहज नैसर्गिक रिश्ता होता है। इसी रिश्ते को मनुष्य द्वारा प्रतिदिन रोजमर्रा के व्यवहार में जीने का उदाहरण है कर्नाटक का कोकरे बेल्लूर गांव।

कोकरे बेल्लूर- कर्नाटक का वह गांव जहां लोग पेंटेड स्टॉर्क और और पेलिकन जैसे प्रवासी पक्षियों को गांव के मेहमान की तरह मानते और उनकी रक्षा करते हैं

बेंगलुरू से लगभग 85 किमी शिम्शा नदी के पूर्वी तट पर बसा यह गांव प्रवासियों पक्षियों के साथ मनुष्य के अनूठे सहजीवन की मिसाल है। इस 300 से अधिक परिवारों के लगभग 1500 लोगों की आबादी अपनी दूनी से भी अधिक संख्या में बड़े आकार वाली प्रवासी पेंटेड-स्टार्क और पेलिकन पक्षियों के साथ एक अनोखे और सुंदर रिश्ते में जीते हैं। जी हां,
कोकरे बेल्लूर के हर आंगन और पिछवाड़े के पेड़ इन खूबसूरत चिड़ियों के बसेरे हैं। बड़े कद-काठी वाले ये खूबसूरत परिंदे आपको यहां लोगों के आंगन, मुंडेर और बरामदों तक में बड़े आराम और निश्चिंतता से चहलकदमी करते मिल जाएंगे। लोगों के लिए ये पक्षी घर-आंगन में खेलते अपने बच्चों की तरह हैं। आपको हैरानी इन पक्षियों और मनुष्य की निकटता को देखकर होगी। नदी किनारे बसा यह गांव चारों ओर से पेड़ों और हरियाली से घिरा है, लेकिन ये पक्षी केवल उन्हीं पेड़ों को अपना बसेरा बनाते हैं जो लोगों के घरों से सटे हैं। बिल्कुल जैसे कि उन्हें लोगों का साथ चाहिए ही चाहिए।

कोकरे बेल्लूर/Kokkare Bellur
पेलिकन

ग्रामवासियों का इनके साथ भावनाओं का रिश्ता है। यहां ये हर साल एक निश्चित मौसम में आते हैं, निश्चित समय तक रहते हैं फिर लौट जाते हैं। आम तौर ये पक्षी यहां हर साल सितंबर-अक्टूबर में मानसून खत्म होने पर कोकरे बेल्लूर आते हैं और मई के आस-पास लौटते हैं। यहां इनका यह प्रवास प्रजनन के लिए होता है। घरों के आसपास इमलियों तथा अन्य ऊंचे पेड़ों पर ये टहनियों आदि की मदद से अपना घोंसला तैयार करते हैं जिनमें मादाएं अंडे देती हैं। बच्चे निकलने और उनके पालन-पोषण तक का सारा समय यहीं व्यतीत होता है। आश्चर्य इस बात की है हर बार अगले साल ये उन्हीं पेड़ों पर घोंसले बनाते हैं जिन्हें छोड़कर जाते हैं। गांव की भावुक महिलाएं इन्हें अपनी उन बेटियों की तरह मानती हैं जो प्रसव के लिए अपने मायके लौटती हैं।

कोकरे बेल्लूर/Kokkare Bellur
घोंसले की तैयारी

 कोकरे बेल्लूर गांव के लोग इन पक्षियों को अपने सौभाग्य और खुशहाली के वाहक मानते हैं। इन पक्षियों के कैल्सियम, फॉस्फोरस और पोटाश से भरपूर इनके बीट एकत्र कर गांववासी अपने खेतों में बिखेरते हैं। फिर हल चलाते हैं। यहां मनुष्य और पक्षियों का यह सहजीवन कब शुरू हुआ किसी को पता नहीं। गांव के बुजुर्गों ने अपने बचपन से ऐसा ही देखा है। फिर उनके बुजुर्गों ने भी अपने बुजुर्गों के जमाने में ऐसा ही सुना था। तो कह नहीं सकते। शायद जबसे यह गांव बसा तबसे ही यह सहजीवन चला आ रहा हो। लोग बताते हैं 1917 में गांव प्लेग की चपेट में आया। तब सारा गांव वहां से कुछ दूर एक अस्थायी आश्रय में शिफ्ट कर गया। लोग यह देखकर हैरान थे कि सारे पक्षी भी उनके साथ प्रवास पर आए। उन्होंने वहीं आस-पास पेड़ों पर अपना ठिकाना बना लिया। महीनों बाद जब लोग वापस अपने गांव लौटे तो वे सारे पक्षी भी उनके साथ लौटे।

कोकरे बेल्लूर/Kokare Bellur
सहजीवन

आज कोकरे बेल्लूर के हर परिवार को उन पेड़ों के लिए एक निश्चित रकम सरकार मुआवजे के तौर पर देती है जिनपर इन पक्षियों का बसेरा है। IUCN यानी ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर’ ने इन दोनों पक्षियों- पेंटेड स्टॉर्क और स्पॉट-बिल्ड पेलिकन को संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची में डाला है। आज जहां भारत के विभिन्न भागों में फैले इनके 21 प्रजनन स्थलों में इन पक्षियों की संख्या कम हो रही है, कोकरे बेल्लूर में इनकी तादाद पहले से कई गुना अधिक हुई है। कुलमिलाकर आज यहां हर साल 3500 से अधिक पेंटेड स्टॉर्क पेलिकन प्रवास करते हैं।

जरूर पढ़ें–

नीचे Follow बटन पर क्लिक करें। इससे आपको हमारे नए पोस्ट की जानकारी मिलती रहेगी। आलेख आपको कैसा लगा नीचे reply बॉक्स में लिखकर हमें जरूर बताएं। आलेख के सारे फोटोग्राफ हमने नहीं खींचे। कुछ तस्वीरें इंटरनेट से जुटाई गई हैं।

About admin 111 Articles
फलसफा यही कि चलते रहना, सीखते रहना और बांटते रहना। अपने बारे में मुझे लगता है यही काफी है, बाकी हम भी आपकी तरह ही हैं।

1 Comment

  1. अछा अनुभव! भारत की संस्कृती का एक दूर होता पहलु। प्राचीन काल से भारत में अन्य जीवों के साथ-साथ प्रकृति के हर पहलु से अपनत्व का एक रिश्ता जोड़ा था। यदि दुनिया को विविध, सुन्दर, और खुशहाल होना है तो अपनत्व के उस भाव को पुनः पनपने देना होगा।

Leave a Reply